अगर तुम कहो
ज़मीन से उठाकर एक पत्थर
अगर फेंको आसमान की ओर
तो वो गिरेगा चाँद पर
तो मैं कहूँगी ठीक है
क्योंकि ज़मीन से उठाकर फेंको पत्थर
और वो गिरे बस फलांग भर दूर
मैं नहीं जानती कि
ऐसा ही हो
अगर तुम कहो
हूँ मैं बदगुमान कि
सही गलत की जानकारी नहीं
तो मैं कहूँगी ठीक है
जानना और जानकारी का फर्क जानती हूँ
पर सही-गलत को जानकर
समझदार नहीं बन सकती
कि मैं नहीं जानती कि
ऐसा ही हो
अगर तुम कहो
कि दुनिया बहुत बेरंग लगती है
कोई रंग खरा नहीं
तो मैं कहूँगी ठीक है
कि दुनिया रंगों की दास्ताँ है
मैं नहीं जानती कि
ऐसा ही हो
अगर तुम कहो
रास्ते पर सोने वालों को
आसमान के सपने देखने का हक नहीं
तो मैं कहूँगी ठीक है
कि बादल महल और झोंपड़ी में फर्क कर आते हैं
मैं नहीं जानती
ऐसा ही हो
अगर तुम कहो
ज़िन्दगी टूट टूटकर
पुराने सांचे में ढल जाती है
तो मैं कहूँगी ठीक है
कि टूटकर आदमी नया सा बनता है
मैं नहीं जानती
ऐसा ही हो
ज़मीन से उठाकर एक पत्थर
अगर फेंको आसमान की ओर
तो वो गिरेगा चाँद पर
तो मैं कहूँगी ठीक है
क्योंकि ज़मीन से उठाकर फेंको पत्थर
और वो गिरे बस फलांग भर दूर
मैं नहीं जानती कि
ऐसा ही हो
अगर तुम कहो
हूँ मैं बदगुमान कि
सही गलत की जानकारी नहीं
तो मैं कहूँगी ठीक है
जानना और जानकारी का फर्क जानती हूँ
पर सही-गलत को जानकर
समझदार नहीं बन सकती
कि मैं नहीं जानती कि
ऐसा ही हो
अगर तुम कहो
कि दुनिया बहुत बेरंग लगती है
कोई रंग खरा नहीं
तो मैं कहूँगी ठीक है
कि दुनिया रंगों की दास्ताँ है
मैं नहीं जानती कि
ऐसा ही हो
अगर तुम कहो
रास्ते पर सोने वालों को
आसमान के सपने देखने का हक नहीं
तो मैं कहूँगी ठीक है
कि बादल महल और झोंपड़ी में फर्क कर आते हैं
मैं नहीं जानती
ऐसा ही हो
अगर तुम कहो
ज़िन्दगी टूट टूटकर
पुराने सांचे में ढल जाती है
तो मैं कहूँगी ठीक है
कि टूटकर आदमी नया सा बनता है
मैं नहीं जानती
ऐसा ही हो
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