Thursday 20 June 2013

ऐसा ही हो

अगर तुम कहो
ज़मीन से उठाकर एक पत्थर
अगर फेंको आसमान की ओर
तो वो गिरेगा चाँद पर
तो मैं कहूँगी  ठीक है
क्योंकि ज़मीन से उठाकर फेंको पत्थर
और वो गिरे बस फलांग भर दूर
मैं नहीं जानती कि
ऐसा ही हो

अगर तुम कहो
हूँ मैं बदगुमान कि
सही गलत की जानकारी नहीं
तो मैं कहूँगी ठीक है
जानना और जानकारी का फर्क जानती हूँ
पर सही-गलत को जानकर
समझदार नहीं बन सकती
कि मैं नहीं जानती कि
ऐसा ही हो

अगर तुम कहो
कि दुनिया बहुत बेरंग लगती है
कोई रंग खरा नहीं
तो मैं कहूँगी ठीक है
कि  दुनिया रंगों की दास्ताँ है
मैं नहीं जानती कि
ऐसा ही हो

अगर तुम कहो
रास्ते पर सोने वालों को
आसमान के सपने देखने का हक नहीं
तो मैं कहूँगी ठीक है
कि बादल महल और झोंपड़ी में फर्क कर आते हैं
मैं नहीं जानती
ऐसा ही हो

अगर तुम कहो
ज़िन्दगी टूट टूटकर
पुराने सांचे में ढल जाती है
तो मैं कहूँगी ठीक है
कि टूटकर आदमी नया सा बनता है
मैं नहीं जानती
ऐसा ही हो 

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