अनकही ,
वो जो कभी कही नहीं गयी
या फिर कही,
मगर सुनी नहीं गयी
या फिर वो जो कही पर
सही गलत के पर्दों में फंसकर रह गयी
या वो जो
कहे न कहे की उलझन में बंधकर रह गयी
जब बातें होठों पर आकर दम तोड़ देती हैं
तो हम गर्दन झुकाए ,टूटी बातों की बेजान लाशों को
एक हाथ से खींच,बेमन से
उसी कब्रिस्तान में ले जाते हैं
जहाँ नजाने और कितनी बातें दफ़न हैं
बातें कुछ, जो अनकही रह गयी
बातें कुछ,जो आँखों में कोहरा बनकर रह गई
पूरे चाँद की रातों में
कभी इन बातों की रूह
मेरे दरवाज़े पर दस्तक दे जाती है
समझ नहीं आता की कब्रिस्तान में बसें है
या घर ही कब्रिस्तान बन गया है
लाशों में रहते तो उनके ख़त्म होने का एहसास होता
पर रूहों के साथ?
उनकी रूहों के साथ लगता है कि
वो आज भी जिंदा हैं
कि हमेशा से यहीं थी
रूहें कुछ, जिनकी ज़मीन से फलक की उड़ान अधूरी रह गई
रूहें कुछ, जो खुश कभी खुश्क-बेजान सी रह गई
खिड़की के कोने पर
एक पौधा लगाया है कि
सहम जातें हैं गर बगीचे पर
पतझड़ का साया पड़े
तो फिर कहीं कब्रिस्तान की ओर रुख न हो
एक पत्ते को झाड़ता देख चोट नहीं पहुँचती
कि एक पत्ते पर कभी घोंसले नहीं बने
घोंसले कुछ ,जिनकी ठंड में रौनक जमकर रह गयी
घोंसले कुछ, जिनमे पखियों के आने की बस आस रह गयी
रूहों से बात करते भूल जातें है
की पौधे को पानी देना बाकी रह गया
जानने लगें है की
कब्रिस्तान में आंसू बहाने से बेहतर
पौधे को उसी से सींचो तो
कुछों के घोंसले बन जायेंगे
घोंसले कुछ, जो नयी जिंदगियों की बाट जोहेंगे
घोंसले कुछ , जिनकी कगार पर खड़े वो नन्हे उड़ान भरेंगे
आँखों में मायूसी की एक भी लहर नहीं
कि हर अनकही को अपना हिस्सा बनाया है
कि रूहों का शोर
अब बस खुसुर-फुसुर लगता है
और सूरज की किरणों से
पत्ते सोने से लगते हैं
समझते हैं की,कुछ बातों के जाने से
कुछ नयी बातों के आने के रास्ते बनेंगे
रास्ते कुछ ,जिनसे और रास्ते बनते जायेंगे
रास्ते कुछ ,जिनके ही वास्ते हम चलते जायेंगे .
वो जो कभी कही नहीं गयी
या फिर कही,
मगर सुनी नहीं गयी
या फिर वो जो कही पर
सही गलत के पर्दों में फंसकर रह गयी
या वो जो
कहे न कहे की उलझन में बंधकर रह गयी
जब बातें होठों पर आकर दम तोड़ देती हैं
तो हम गर्दन झुकाए ,टूटी बातों की बेजान लाशों को
एक हाथ से खींच,बेमन से
उसी कब्रिस्तान में ले जाते हैं
जहाँ नजाने और कितनी बातें दफ़न हैं
बातें कुछ, जो अनकही रह गयी
बातें कुछ,जो आँखों में कोहरा बनकर रह गई
पूरे चाँद की रातों में
कभी इन बातों की रूह
मेरे दरवाज़े पर दस्तक दे जाती है
समझ नहीं आता की कब्रिस्तान में बसें है
या घर ही कब्रिस्तान बन गया है
लाशों में रहते तो उनके ख़त्म होने का एहसास होता
पर रूहों के साथ?
उनकी रूहों के साथ लगता है कि
वो आज भी जिंदा हैं
कि हमेशा से यहीं थी
रूहें कुछ, जिनकी ज़मीन से फलक की उड़ान अधूरी रह गई
रूहें कुछ, जो खुश कभी खुश्क-बेजान सी रह गई
खिड़की के कोने पर
एक पौधा लगाया है कि
सहम जातें हैं गर बगीचे पर
पतझड़ का साया पड़े
तो फिर कहीं कब्रिस्तान की ओर रुख न हो
एक पत्ते को झाड़ता देख चोट नहीं पहुँचती
कि एक पत्ते पर कभी घोंसले नहीं बने
घोंसले कुछ ,जिनकी ठंड में रौनक जमकर रह गयी
घोंसले कुछ, जिनमे पखियों के आने की बस आस रह गयी
रूहों से बात करते भूल जातें है
की पौधे को पानी देना बाकी रह गया
जानने लगें है की
कब्रिस्तान में आंसू बहाने से बेहतर
पौधे को उसी से सींचो तो
कुछों के घोंसले बन जायेंगे
घोंसले कुछ, जो नयी जिंदगियों की बाट जोहेंगे
घोंसले कुछ , जिनकी कगार पर खड़े वो नन्हे उड़ान भरेंगे
आँखों में मायूसी की एक भी लहर नहीं
कि हर अनकही को अपना हिस्सा बनाया है
कि रूहों का शोर
अब बस खुसुर-फुसुर लगता है
और सूरज की किरणों से
पत्ते सोने से लगते हैं
समझते हैं की,कुछ बातों के जाने से
कुछ नयी बातों के आने के रास्ते बनेंगे
रास्ते कुछ ,जिनसे और रास्ते बनते जायेंगे
रास्ते कुछ ,जिनके ही वास्ते हम चलते जायेंगे .
do i really need to comment what i feel about this poem? nah!!
ReplyDeleteits just i wanna remember this blog that's why i am commenting!
#nayel_maseer