सुने-सुनाये रागों से अलग
एक विराग दूर ही जलता है
खामोश सा ही
पर कितना मासूम जैसे
नन्ही गोरी कलाइयों में
लाल चूड़ियों बजने का
चुपचाप शोर
मुट्ठियाँ भरी उसकी नहीं
पर उस खालीपन में जीने का
एहसास लगता है
पर उस खालीपन में जीने का
एहसास लगता है
और एक विराग सा जलता है
आज़ादी जैसे स्कूल से छुट्टी हो गयी है
मुट्ठी भर आसमान उड़ने को बहुत लगता है
लगता है सारे कसे तार टूट गए हैं
और विराग सा जलता है
कल- बीता हुआ बहुत सुहाना लगता है
कल-आने वाला अंजाना डरावना सा लगता है
कल-कल की दौड़ में तलवे फटने लगे हैं
दो कानों के बीच के शोर में
कैसे सुनाई दे अपनी ही आवाज़ ?
वक़्त अब बड़ा बेरहम सा लगता है
भीड़ से जुड़े हुए, भीड़ में जड़े हुए
एक विराग मन में ही जलता है
जी करता है ,इस बेहोशी में
रुककर कुछ पल पूछूं
क्यों इतना छलावा? किसलिए इतनी दौड़?
सारी आँखें यही कहती जान पड़ती है
इस झूठ के झरीदार पहनावे का बोझ
मेरे कंधे न सम्भाल सकेंगे
जान-पहचान में भी अब अजनबी लगता है
हाँ,एक विराग का दिया मेरे साथ-साथ ही चलता है.
लगता है सारे कसे तार टूट गए हैं
और विराग सा जलता है
कल- बीता हुआ बहुत सुहाना लगता है
कल-आने वाला अंजाना डरावना सा लगता है
कल-कल की दौड़ में तलवे फटने लगे हैं
दो कानों के बीच के शोर में
कैसे सुनाई दे अपनी ही आवाज़ ?
वक़्त अब बड़ा बेरहम सा लगता है
भीड़ से जुड़े हुए, भीड़ में जड़े हुए
एक विराग मन में ही जलता है
जी करता है ,इस बेहोशी में
रुककर कुछ पल पूछूं
क्यों इतना छलावा? किसलिए इतनी दौड़?
सारी आँखें यही कहती जान पड़ती है
इस झूठ के झरीदार पहनावे का बोझ
मेरे कंधे न सम्भाल सकेंगे
जान-पहचान में भी अब अजनबी लगता है
हाँ,एक विराग का दिया मेरे साथ-साथ ही चलता है.