Bodhan is a collection of simple poems and stories that give panoramic view of emotions. Bodhan is about realizing and not understanding. you ask "realizing what?" Realizing that its all about realizing and not understanding.
Sunday, 21 April 2013
लहरें
पहले नाराज़ थी
फिर खुश
अब हल्का सा गुस्साई सी हूँ
सवालों की झड़ी लग जाती है
ज़िन्दगी एक जैसी क्यूँ नहीं रहती?
क्यूँ हर बार उलझकर रह जाती है?
जब उस समंदर वाली रेत में
हलके हलके पांव धंसते
और जब हर लहर गले मिलकर अलविदा कहती तो सोचती
मेरी भावनाओं की गाज़ उन लहरों जैसी ही तो थी
गडगडाती दो पल को
फिर तेज़ बारिश
फिर वो पीली वाली धूप
कितना ज़रूरी था हर उस लहर को नाम देना?
क्यों ज़रूरी था उस हर लहर को नाम देना ?
क्या किनारे बैठे उन लहरों को बस देखना काफी नहीं?
या फिर बिना सोचे उन लहरों के साथ बह जाना ही
क्यूँ हर लहर को सही गलत से सीमांकित करना ?
क्यों अपने आप को
या फिर किसी और ही को
उस हर तरंग से सीमित करना ?
क्यूँ ये नहीं समझना की
लोग "क्रोध" नहीं हैं !
लोग "द्वेष " नहीं हैं !
लोग "अहंकार" भी नहीं हैं !
क्यों नहीं समझना की
लोग लहरें नहीं
अथाह महासागर हैं
और
महासागर की पहचान लहरों से नहीं होती
क्यों अपने "मैं" के ऐनक से देख
उस हर महासागर को एक छिछला पोखर बना देना?
क्यों "मैं" इतना ज़रूरी था?
क्या सिर्फ होना ही काफी नहीं ?
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