Friday 29 November 2013

व्यर्थ


  "कलमुँही, पता नहीं किस घडी में पैदा हुई टेढ़े पैर लेकर , मर क्यूँ नहीं गयी?न जाने क्या पाप किया कि इतनी बदसूरत बेटी मिली मुझे?" और वो सिसक कर सब सुनती रहती। किसीको उसके होने कि ख़ुशी नहीं थी। माँ बाप पे हर कोई ताने कसता कि "हुई भी बेटी और वो भी अपंग और बदसूरत ?"। उसे सब लोग घृणा से "कल्लो" बुलाते, काली जो थी और हर बार जब उसे बुलाया जाता तो ये एहसास और गहराता जाता कि वो कितनी बदसूरत थी।  नफरत हो गयी थी उसे खुद से, और इसका एक ही उपाय था।
दौड़ !!!
     दौड़ खुद से दूर की।एक दौड़ जिसमे वो खुद कि बदसूरती और वो टेढ़े पैर भूल जाए । एक दौड़ जिसकी तेज़ी बस ये दिखाती कि उसका होना कितना बेकार है।
       आज वो बित्ते भर कि लड़की "कल्लो" नहीं "इच्छा" है। लोग पहचान भी नहीं पाते उसे, इतना कायाकल्प हो चुका। पैर भी टेढ़े नहीं रहे। बहुत जानी-पहचानी हस्ती हो गयी है ,शायद सब उस दौड़ का कमाल था । क्या नहीं था उसके पास ? जिसकी कल्पना नहीं थी वैसी ज़िन्दगी जी रही थी वह !
       पर एक आवाज़ सर में अब भी गूंजती "कल्लो ","टेढ़े पैर वाली "… उठकर आईना देखती और महसूस करती कि उसे आईने में "कल्लो " ही दिखती। अपनी पुरानी पहचान से नफरत करती इसलिए तो नाम बदल दिया पर "कल्लो " आज भी उसका पीछा नहीं छोड़ती और वो देखती हर बार वो सर कि आवाज़ एक साया का रूप ले लेती और ज़ोर ज़ोर से चिल्ला के "कल्लो","टेढ़े पैर वाली " कह  ठहाके लगाती  और जब फर्श पर गिरकर "कल्लो " से जब वो "इच्छा " बन जाती तब वो साया कहता " वाह!इतनी सुन्दर और इतनी खूबसूरत "… इच्छा  अहंकार से भर जाती कि वो अब बहुत जानी मानी खूबसूरत अभिनेत्री है।
अब साया हमेशा उसके ही साथ रहता ,हर वक़्त ! और ये "खूबसूरत अभिनेत्री" कल्लो और इच्छा वाली पहचान के बीच झूलती रहती। साया उसे पागल बना रहा था! रोज़ रोज़ और करीब करीब हर घंटे उसे ऐसे दौरे पड़ने लगे जब वो कुछ पल खुद से बेइंतहा नफरत करती और फिर कुछ पल बाद अपने पर गुमान करती ! संतुलन संतुलन खोने लग गया था उसका !अब वो नहीं जानती थी कि वो थी कौन?
 कल्लो या इच्छा ?
    घडी की आवाज़ उस अस्पातल के सन्नाटे को चीर रही थी और इच्छा बिस्तर पर बेसुध पड़ी थी । पूरा शरीर झुलसा हुआ और घुटनों के नीचे से पैर कटे हुए ! मालूम होता है कि उसने कुल्हाड़ी से खुद के पैर काटे और पूरे घर को आग लगा दी। लोग हैरान थे  कि कोई भला अपने ही साथ ऐसा क्यूँ करेगा ? पर सिर्फ इच्छा जानती थी कि उसने ऐसा क्यूँ किया ?
   ताकि वो उस साये को बता सके कि अब वो टेढ़े पैर वाली नहीं थी और न ही बदसूरत ! क्यूंकि अब न उसके पास कोई  चेहरा था और न ही पैर.. कर क्या लेता साया?
पर साया अब भी दरवाज़े पर खड़ा था और हंस रहा था इच्छा पर और इच्छा अपनी बेचारगी और लाचारी का अनुभव कर रही थी। सोच रही थी की "ये बस एक साया ही तो था, एक अस्तित्व हीन साया ! कितना ज़रूरी था उसको गम्भीरता से लेना ?कि सारी ज़िन्दगी उस साये से लड़ने में ही ख़त्म  हो गयी " और कनखियों से आंसू रिसने लगे और आंसू के नमक से उसका जला चेहरा और जलन करने लगा, घुटनों के नीचे का खालीपन और टीस करने लगा । पहली बार उसने खुद को देखा बिना किसी साये के हस्तक्षेप के!
     सांसें तेज़ हुई , डॉक्टर साहब आये ,कुछ देर कि कोशिशों के बाद उन्होंने भी अपने हाथ बाँध लिए ! इतना रक्तस्त्राव होने के बाद इच्छा का बचना संभव ही कहाँ था?
 

      साया अब भी दरवाज़े पर खड़ा था!किसी और मासूम को ढूंढ़ने की फिराक में ,जिसे उस साये कि व्यर्थता का बोध न हो!




8 comments:

  1. Outstanding! Don't remember reading something as beautiful anytime before!!

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  2. Thank you so very much :) I am glad that you took out time to comment :D

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  3. Hey!! very intense.. yet so simple... Loved it !!
    Duniya ke vicharoon ke saye ko cheerna,
    Zindagi ki pehli sharth hai ,
    Hasna aur hasana jeeney ka arth hai,
    Baat hamesha samji he nahi jaati,
    Anubhav ke bina zindagi Vyarth hai.
    :)

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  4. shubhendu : thank you so much shubendu :)

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  5. @Aditya : "Baat hamesha samji he nahi jaati,
    Anubhav ke bina zindagi Vyarth hai.
    :)"
    Loved it :D
    glad that you liked it..aditya :)

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  6. beautiful....

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